Tuesday, 13 September 2016

हिन्दी दिवस पर प्रो. बी. एन. विश्वकर्मा की दो कविताएँ ( Hindi Diwas par Dr. B. N. Vishwakarma ki do kavitayen)



कविता-1 (गीत)
सब भाषाएँ भाई-बहन हैं, दक्षिण को यह भान दो
हिन्दी को सुस्थान दो साथी हिन्दी को सम्मान दो

जन जन का अरमान है हिन्दी
राम कृष्ण रहमान है हिन्दी
भारत की पहचान है हिन्दी
मीरा और रसखान है हिन्दी
मिल जुलकर अब वतन को प्यारों अपनी एक जुबान दो
हिन्दी को सुस्थान दो साथी  हिन्दी को सम्मान दो

अपने ही आँगन में हिन्दी
बनी आज निर्वासिता
हिन्दी के जन ने ही हिन्दी
से न रखा है वास्ता
राष्ट्रभाषा के हित में मत में अंतर को प्रस्थान दो
हिन्दी को सुस्थान दो साथी  हिन्दी को सम्मान दो.
(-प्रो. बी. एन. विश्वकर्मा, पटना)
व्याख्याता एवं साहित्यकार, मो.- 9122720241



कविता-2
हिन्दी भाषा अपनी भाषा
इसका हो उत्थान
हम सब करते रहें हमेशा
हिन्दी का सम्मान
हिन्दी भारत का गौरव है
हिन्दी अपनी शान
सारे भारतीय करते हैं
हिन्दी का गुण-गान
भेद-भाव को भूल करें हम
हिन्दी पर अभिमान
राष्ट्र भाषा पर रहें एकमत
   इसमें शक्ति महान    
हिन्दी भाषा अपनी भाषा
इसका हो उत्थान.
(-प्रो. बी. एन. विश्वकर्मा, पटना)

व्याख्याता एवं साहित्यकार, मो.- 9122720241

Thursday, 8 September 2016

डॉ. बी. एन. विश्वकर्मा- 'क्यों छोड़ न देते पीना-पिलाना' (Dr. B.N. Vishwakarma- 'Kyon Chhor na dete Pina Pilana)



क्यों छोड़ न देते पीना-पिलाना
(कवि- डॉ. बी. एन. विश्वकर्मा, पटना) मो. 9122720241)
क्योंछोड़ न देते पीना-पिलाना

और आना-जाना मधुशाला.

मधुशाला तुम्हें लुभाएगी
रंगीनियाँ तुम्हें हरषायेगी 
मधुबाला नित सज धज कर तुम्हें 
नित अपने पास बुलायेगी.

जाने पर साथी मिल जाते
सब पीते और पिलाते हैं
दुर्दिन में आते काम नहीं
पल भर नहीं हाथ मिलाते हैं.

रमुआ का घर नीलाम हुआ
तब कौन बचाने आया था
जब बेवा की इज्जत लुट गई थी
तब कौन सामने आया था.

पीकर गंदे नालों में गिरते
तब न बचाती मधुशाला.
घर में जब मातम फैला हो
नजर न आती मधुबाला.

उस रोज मरा था रामरतन
पर आज न जाने कौन मरा
हो रहे रोगी तुम पी पीकर 
परिवार छुटा अच्छा भाला.

क्यों छोड़ न देते पीना-पिलाना
और आना-जाना मधुशाला.
(-डॉ. बी. एन. विश्वकर्मा, पटना) 
मो. 9122720241)