Saturday, 23 July 2016

बिखर गया मेरा बचपन : कवि- लक्ष्मी नारायण कंठ ( Bikhar gaya mera bachpan: Poet- Lakshmi Narayan Kanth)


The poet Shri Lakshmi Narayan Kanth expresses very poignantly the agony of a little daughter who is deprived of meeting her father. एक ऐसी नन्ही पुत्री की व्यथा को कवि श्री लक्ष्मी नारायण कंठ ने बड़े ही मार्मिक ढंग से दिखाया है जिसे पिता से ही नहीं मिलने दिया जाता है. 

Art by Samridhi Shikha, Class-2

बिखर गया मेरा बचपन
कब मिटेगी यह तड़पन
सोचती, कैसा यह दर्पण
किसी ने मेरी पीड़ न जानी
मेरी अभिभावक अज्ञानी
मेरे सपनों पर फेर दी है पानी


सखी सहेली सहज सलोनी
बचपन की सहगामी
फुदक फुदक कर कहती
तू होती जाती सयानी
कैसी है अभिभावक अज्ञानी
मेरे सपनों पर फेर दी है पानी

मैं बचपन में निश्छल बाला
धूम नहीं मचाती
कभी भी किसी को भी
अकड़ कर नहीं सताती
फिर भी अभिभावक अज्ञानी
मेरे सपनों पर फेर दी है पानी

राजपुत्री बन पितृ-प्रेम की
निश्छल भाव दिखाती
पापा कह कर दौड़ा करती
और सबों का प्रेम मैं पाती
अधर पर रही कहानी
ऎसी अभिभावक अज्ञानी
मेरे सपनों पर फेर दी है पानी

बचपन में जब विरह सताता
आगे कुछ नहीं सुहाता
खोया दिवस न लौट आता
कैसा क्रूर है विधाता
अजब है अभिभावक अज्ञानी
मेरे सपनों पर फेर दी है पानी

मेरे हिस्से के पितृ-प्रेम को
किसने दी अग्नि की ज्वाला
इस आस में मैं बढ़ती बाला
कि पिता का प्रेम है रखवाला
संभल जा अभिभावक अज्ञानी
मेरे सपनों पर फेर दी है पानी.

(कवि - श्री लक्ष्मी नारायण कंठ) 
मो9973360962
रेखाचित्र कलाकार - सुश्री समृद्धि शिखा, (तत्कालीन विद्यार्थी, कक्षा-2)
Poet- L.N. Kanth

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