Friday 24 March 2017

Bharti Lal- an excellent artist of Madhubani Painting (भारती लाल -मधुबनी पेंटिंग की गुणी कलाकार)

( गूगल द्वारा किया गया हिन्दी अनुवाद नीचे पढ़ेंं)
Smt. Bharti Lal is an accomplished artist in Madhubani Painting and has got appreciation from large number of pople who aspire to have a paiting made by her. She has got education upto Intermediate and is the wife of retd. engineer Sri Ganesh Chandra Lal of Indian Railways. His husband Sri Lal and all of her four children have always supported and encouraged her. The special thing with Smt. Lal is that she did not get any training in this internationally recognised art form. She got married in very early age and devoted herself to take care of her husband and children. And because of her hard works, all the three daughters are having professional PG degree as  M.Lib,/ MCA/ MBA. The only son completed B.Tech and then joined his work where he has been sent abroad in view of his capabilities. For purchasing her paintings you may contact to the email ID- ashalata194@yahoo.in OR  hemantdas_2001@yahoo.com
( गूगल द्वारा किया गया हिन्दी अनुवाद)
श्रीमती भारती लाल मधुबनी पेंटिंग में एक निपुण कलाकार हैं और बड़ी संख्या में लोगों से प्रशंसा प्राप्त की गई है जो उनके द्वारा बनाई गई पेंटिंग की अपेक्षा करते हैं। इन्होने प्रवेशिका तक शिक्षा ग्रहण की है और ये भारतीय रेल के रिटायर इंजीनियर गणेश चंद्र लाल की पत्नी है   उनके पति श्री लाल और उनके चार बच्चों ने हमेशा से उनका समर्थन किया और उन्हें प्रोत्साहित किया। श्रीमती के साथ विशेष बात लाल यह है कि इस अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त कला विधा में उन्हें कोई प्रशिक्षण नहीं मिला। उसने बहुत ही कम उम्र में शादी की और तब उसने अपने पति और बच्चों की देखभाल करने के लिए खुद को समर्पित किया। और उसकी कड़ी मेहनत के कारण, सभी तीन बेटियां एम. लिब, / एमसीए / एमबीए के रूप में पेशेवर पीजी डिग्री कर चुकी  हैं। एकमात्र पुत्र ने बी.टेक पूरा कर लिया और फिर अपने कार्य में शामिल हो गए जहां उन्हें अपनी क्षमताओं को देखते हुए विदेश भेजा गया। इनकी पेंटिंग को खरीदने के लिए आप ईमेल ashalata194@yahoo.in अथवा hemantdas_2001@yahoo.com पर सम्पर्क कर सकते हैं.




















Thursday 16 March 2017

Signal of Love (Poem by Dr. Veena Karn) : अभिसार संकेत (डॉ.वीणा कर्ण की कविता)


art by Prashant

(English translation given below the
Hindi text.)
पुलक प्राणों में सुरभित स्नेह
भावना से भींगा मनुहार,
प्रणय की बगिया में चुपचाप
मौन करना चाहे अभिसार.

दिया तुमने वीणा में गान
लरजते ओठों पर मुस्कान
निर्वसन हुआ मनोरथ मूल
बनी उसकी स्वर्णिम पहचान,

नियति की गति को कर गातिशील
तेरा संवेदनशील दुलार,
प्रणय की बगिया में चुपचाप
मौन करना चाहे अभिसार.

तुम्हारी वह अनन्त मुस्कान
कान में मधुर स्वरों के तान
शक्तिमय आलिंगन का पाश
भेंटता जीवन का वरदान

ह्रदय धड़कन में खिला वसन्त
भावना उठी पर्वताकार
प्रणय की बगिया में चुपचाप
मौन करना चाहे अभिसार.
(-डॉ. वीणा कर्ण)

Know more about Dr. Veena Karn डॉ. वीणा कर्ण के बारे में और जानें :https://www.blogger.com/blogger.g?blogID=5286452933330653896#editor/target=post;postID=4086976303082371786;onPublishedMenu=allposts;onClosedMenu=allposts;postNum=3;src=postname

English translation follows:

Fragrant affection in fluttering soul
Adulations filled with emotion.
Quietly in love
Silence wants to play love

You gave a song in the Lyra
Smile on lazy lips
The root aspiration turned naked
Its Golden Identity,

The speed of destiny to be dutiful
Your sensitive caress
Quietly in love
Silence wants to play love

Your eternal smile
Melodious tone of the ears
Powered hug loop
Gift of life

Heart fed to heart beat
Feeling like the mountain
Quietly in love
Silence wants to play love
(-Original poem in Hindi by Dr. Veena Karna)
English translation by Hemant 'Him'
.........




Wednesday 15 March 2017

मैथिलीक धरोहर 'सीता-शील' (समीक्षक- डॉ. वीणा कर्ण) / 'Seeta-sheel' - An invaluable legacy of Maithili (Review by Dr. Veena Karn)


संयुक्त राष्ट्र में भारत के महामहिम राजदूत श्री अजित कुमार  
The following text is in Maithili language. View more photos below the text.
(खण्ड- 1 /9) खड्गबल्लभ दास स्वजनजीक सीता-शीलमैथिली काव्यक डॉ. वीणा कर्ण कृत साहित्यिक विवेचना
डॉ. वीणा कर्ण  सीता शील पुस्तक को दिखाते हुए 
मानवीयआदर्श ओ अध्यात्म चिन्तनक अभिव्यक्तिक लेल काव्य अमृत्वक काज करैत अछि. भक्तिक भावुकता सँ भरल मोन कें काव्य सृजंक प्रेरणा स्रोत कहब अनुपयुक्त नहि होएत. एहि काव्यक शब्दार्थ होइत अछि कवि-कर्म जकर काव्य सम्पादन मे रचनाकारक काव्य रचनाक प्रवृत्ति ओ अभ्यास कार्यरत होइत अछि आ अहि व्युत्पत्ति ओ अभ्यासक बल पर ओ जे रचना पाठक कें समर्पित करैत छथि से काव्य कहबैत अछि. वस्तुत: काव्यक रसानुभूति सँ हमर हृतंत्री मे जे तरंग उत्पन्न लेइत अछि ओकर लय ओ छन्द मे बान्हल रहब आवश्यक होइत अछि जे शैलीक आधार पर क्रमश: तीन कोटि मे बाँटल रहैछ, यथा- गद्य, पद्य ओ मिश्र. मिश्र केँ चम्पू काव्य सेहो कहल जाइत अछि. छन्दरहित काव्य विधान कें जँ गद्य तँ छन्द्युक्त रचना कें पद्य कहल जाइत अछि. पुन: गद्य मे अनेकानेक विधा अछि, जेना- कथा, उपन्यास, संस्मरण, यात्रावृत्तांत , रिपोर्टाज, नाटक ,एकांकी आदि-आदि. ओहिना पद्यक सेहो दू भेद होइत अछि.: प्रबंध ओ मुक्तक. प्रबन्ध काव्यक सेहो दू भेद होइत अछि महाकाव्य ओ खण्डकाव्य. महाकाव्य मे जँ इतिहासप्रसिद्ध महापुरुष अथवा महीयशी नारीक सम्पूर्ण जीवनक गतिविधिक चारित्रिक लीला-गान रहैत अछि तँ खण्डकाव्यक विषयवस्तु होइत अछि एहने महापुरुष अथवा महीयशी नारीक जीवनकप्रसिद्ध खण्ड्विशेषक घटनाक्रमक चित्रांकन.
कवि खडगबल्लभ दास 'स्वजन' अपनी पत्नी इन्द्रमाया देवी के
प्रस्तुत कसौटीक आधार पर सीता-शीलकेँ प्रबन्धकाव्यक कोटि मे राखल जा सकैत अछि सेहो महाकाव्यक कोटि मे. हँ. महाकाव्यक संज्ञा सँ अभिहित करबाक क्रम मे एहि रचनाक सन्दर्भ मे किछु नियम कें शिथिल करए पड़त. एहि रचनाक महाकाव्यत्व सिद्ध करए मे मात्र दू टा तत्व,विविध छन्दक प्रयोग ओ सर्गवद्धता कें अभाव कें शिथिल करए पड़त. सीता-शीलक रचनाकार स्वयं एकटा साहित्यिक विधाक कोनो कोटि मे नहि राखि पद्य-रचना कहैत छथि:
सामान्य जन कें ओ सुग्रन्थक अर्थ समझ पड़नि जें
स्पष्ट सुन्दर भाव समझै मे कठिनता होनि तें
से जानि रचलहुँ मधुर भाषा मैअथिली कें पद्य मे
लागत पड़ै मे पढ़ि रहल छी जाहि तरहें गद्य मे
(अगिला पोस्ट मे पढ़ू खण्ड.-2 /9 )
 (खण्ड- 2 /9) खड्गबल्लभ दास स्वजनजीक सीता-शीलमैथिली काव्यक डॉ. वीणा कर्ण कृत साहित्यिक विवेचना:-
वस्तुत: रचना कोन कोटिक अछि से परिभाषित करब रचनाकारक नहि अपितु आलोचकक काज होइत छन्हि. ई हमर सभक दायित्व अछि जे एहन महानतम रचनाक प्रति संवेदनशील भए एकर उपयोगिता कें देखैत एकरा प्रति न्याय कए सकी. एकरा अहू लेल खण्डकाव्य नहि कहल जा सकैत अछि जे खण्डकाव्य तँ महाकाव्यक शैली मे प्रधान पात्रक जीवनक कोनो एक खण्ड विशेष के लए कए लिखल जाइत अछि, किन्तु एहि रचना मे भगवती सीताक जन्म सँ लए कए जीवनक अन्त मे धरती प्रवेश धरिक घटना निबद्ध अछि. वास्तव मे देखबाक ई अछि जे प्रबन्धकाव्य लेल जे आवश्यक अर्हता होइत अछि तकर समाहार एहि महाकाव्य मे भेल अछि अथवा नहि.
प्रबंन्ध-काव्य मे सर्वप्रथम कथानकक अनिवार्यता होइछ आ तकर प्रयोजन ओहि पात्रविशेषक क्रियाकलापक कथा होइत अछि जाहि कथा सँ प्रभाव ग्रहण कए भावक अपन स्वच्छ चरित्रक निर्माणक दिशा मे अग्रसर भए लोक-कल्याणक भावना कें सबलता प्रदान करैत छथि. एहि महाकाव्यक कथानक सेहो एकटा महत् उद्देशय कें लए कए सृजित भेल अछि जाहि सँ समाज सुधारक मार्ग प्रशस्त भए सकए. भगवती जानकीक जीवन-चरितक प्रसंग मे रचनाकारक जे भावोक्ति छन्हि ताही सँ एकर कथानकक चयनक औचित्य प्रतिपादित भए जाइत अछि. देखू जे महाकवि स्वयँ की कहैत छथि – “ओहिठाम प्रातिज्ञाबद्ध भ गेलहुँ जे रामायण मे वर्णित जगत जननी जानकीक आदर्श चरित्रक वर्णन अपन मातृभाषा मैथिली मे पद्य रचना कए पुस्तक प्रकाशित कराबी, तें
आदर्श पुरुषक प्रेमिका कें चरित शुभ लीखैत छी
उपदेश नारी लेल सीता-शीलमध्य पबैत छी
अछि धारणा सीताक प्रति उर-मध्य श्रद्धा-भक्ति जे
पद रचि प्रकट कs रहल छी अछि योग्यता आ शक्ति जे
एकरा संगहि एहि महाकाव्यक कथानकक चयन मे रचनाकार जे एहन सफलता प्राप्त कएलन्हि अछि से अहू कारणें जे ग्रामीण निष्कलुष वातावरण मे रहि के महाकवि खड्गबल्लभ दास अपन एकान्त साधना सँ सुन्दर कथानकक चयन कएलन्हि अछि जाहि मे प्रेमक मधुर संगीत अछि तँ उद्दाम उत्साह सेहो. मानवताक व्याकुल आह्वाहन अछि तँ प्रकृतिक मधुर सौंदर्य अछि. सीताक वैभवक संग आदर्शक आकर्षण सेहो सशक्तता सँ चित्रित भेल अछि.
(अगिला पोस्ट मे पढ़ू खण्ड.-3 /9 )
सांस्कृतिक शोधकर्ता श्री भैरब लाल दास 
 (खण्ड- 3 /9) खड्गबल्लभ दास स्वजनजीक सीता-शीलमैथिली काव्यक डॉ. वीणा कर्ण कृत साहित्यिक विवेचना:-
कहल जा सकैत अछि जे एकर कथानक संयमित भावात्मकता ओ संयमित कलात्मकताक संग सामंजस्य सँ अत्यन्त प्रभावोत्पादक भए उठल अछि. वास्तवमे एहि महत् काव्यक कथानकक माध्यम सँ मानवीय मूल्यक अवमूल्यन कएनिहार लोक कें मर्यादा रक्षाक पाठ पढ़एबाक आवशयकता बूझि एहन कथानक प्रस्तुत कएल गेल अछि जकर कथानक चयनक मादें पटना विश्वविद्यालयक अवकाशप्राप्त मैथिली विभागाध्यक्ष प्रो. आनन्द मिश्र लिखैत छथि -एहि पुस्तक द्वारा कवि साधारणों व्यक्ति कें ओहि उदात्त चरित्र सँ परिचय कराय नैतिकता एवं शालीनताक पाठ दए रहल छथि. लोकक चारित्रिक उत्थानहि सँ समाज एवं देशक उत्थान भए सकैछ. सम्प्रति लोक आधुनिक चाकचिक्यक जाल मे फँसल अपन संस्कृति एवं सभ्यता सँ हँटल जा रहल अछि. मानवीय मूल्यक अवमूल्यन भए गेल अछि. लोक अपन आदर्श चरित्र सँ अनभिज्ञ भए रहल अछि. बिना संस्कृतिक उत्थानहि आन प्रगति अकर्मिक भए जाएत.”  वस्तुत: एहि कारणसँ एहन आदर्श कथानकक चयन कएल गेल अछि.
महाकाव्यक दोसर तत्व होइत अछि नायक. जें कि पात्रक माध्यम सँ कवि कें समाजकल्याणकारी महत् उद्देशयक प्रतिपादन करबए पड़ैत छैन्हि तें महाकाव्यक पात्र मे लोकनायकत्व क्षमता रहब अत्यन्त आवश्यक होइत अछि. संगहि कथानकक प्रतिपादन मे एहि लोकनायकक उद्देशयक पूर्तिक लेल अन्य सहयोगी पात्र सभक अनिवार्यता सेहो छैक. सीता-शीलमे पात्रक सुन्दर प्रयोगे सँ एकर सफलता सिद्ध भेल अछि. भगवत् भक्तिक प्रति अनुरक्ति सँ मनुष्य कें जाहि ब्रह्मानन्द सहोदरक प्राप्ति होइत अछि सएह जीवनक चरम उत्कर्ष बूझल जा सकैत अछि. परमात्माक असीम सत्त. ओ हुनक लोककल्याणक भावनाक अजस्र धार मे सराबोर करबाक करुण चित्रण मैथिली सीताराम विषय महाकाव्यक विषय वस्तु बनल अछि. मर्यादा पुरुषोत्तम राम ओ अयोनिजा भगवती सीताक चरित्रक स्मरण मात्र सँ एहि भावक बोध होइछ जे संसार मे जे किछु अछि से अही महत् चरित्र परमेश्वर ओ परमेश्वरी सँ ओत प्रोत अछि आ अही परमात्मा सीता-रामक लीला-गान कें प्रस्तुत रचना मे स्थान देल गेल अछि.
स्वजन जी के सुपुत्र  श्री रमाकान्त दास, (रि).एड.एस.पी.
(अगिला पोस्ट मे पढ़ू खण्ड.-4 /9 )

 (खण्ड- 4 /9) खड्गबल्लभ दास स्वजनजीक सीता-शीलमैथिली काव्यक डॉ. वीणा कर्ण कृत साहित्यिक विवेचना:-
भौतिकताक सीमा सँ ऊपर उठि कए सीता-शीलक रचनाकार ओहि परम सत्ताक संग अपन चेतना कें एकाकार करैत अपन स्वकेर उत्सर्ग कए देने छथि. परमात्माक चारित्रिक उत्कर्षक प्रकाश एहि रचना मे सर्वत्र परिव्याप्त अछि जे यावच्चंद्र दिवाकरौहमरा सभक आचार विचार कें अनुशासित करैत रहत. मानवीय मूल्य संरक्षणक जेहन व्यवस्था, ओहि व्यवस्थाक प्रति व्यक्तिक उत्तरदायित्व निर्वहन जेहन दिशा-निर्देश जाहि रूपें एहि रचना सँ प्राप्त होइत अछि तकर समाजकल्याणक मार्ग प्रशस्त करए मे अत्यन्त पैघ भूमिका छैक तें एकर रचनाकार एहन पात्रक चयन कएलन्हि जिनक आदर्शक आलोक सँ समाजक मानसिकता कें प्रकाशित करबाक सद्प्रयास मे ओ कहैत छथि :-
आदर्श पूरुषक प्रेमिका कें चरित शुभ लीखैत छी
उपदेश नारी लेल सीता-शीलमध्य पबैत छी
....
आ पुन: -
ई चरित पढ़ि आदर्श जीवन कें बनौती नारि जे
बनतीह जग मे परम पूज्या पतिक परम पियारि से
महाकाव्यक लेल सर्गबद्धता अनिवायता कें स्वीकारल गेल अछि किन्तु एकर कथानक कें विषयवस्तुक अनुरूप शीर्षक दए विषय कें विश्लेषित कएल गेल अछि. सर्गक अनिवार्यताक स्थान पर एहन प्रयोग महाकविक भावुक मानसिकताक परिचायक तँ अछिए संगहि एहि दिशा मे सक्रिय रचनाकारक लेल ई पोथी एकटा नव दृष्टिकोण सेहो प्रदान करैत अछि.
महाकाव्य मे विविध छन्दक प्रयोग हएब सेहो आवश्यक अछि. अगिला विषयक विश्लेषण लेल पछिले सर्गक अन्त मे छन्द परिवर्तित कए देल जाइत अछि किन्तु एहि वृहत्‍ रचनाक विषयवस्तु कें एकहि छ्न्द मे नियोजित कए कवि प्रवर चमत्कार उत्पन्न कए देने छथि.
...
महाकाव्य मे अनेक छन्दक प्रयोग सँ ओकर अनेक तरहक रसास्वादनक स्थान पर एकहि छन्द मे एकर नियोजन सँ कोनो अन्तर नहि आएल अछि किएक तँ रसास्वादनक प्रवाहक गतिशीलता कखनहु अवरोध उत्पन्न नहि करैछ. एहन छन्द प्रयोगक मादें कवि स्वयं कहैत छथि :-
मात्रा अठाइस पाँति प्रति लघु-गुरु चरण कें अन्त मे
सुन्दर श्रवण- सुखकर मधुर हरिगीतिका कें छन्द मे
(अगिला पोस्ट मे पढ़ू खण्ड.-5 /9 )
श्री अर्जुन नारायण चौधरी
(खंड - 5 /9) खड्गबल्लभ दास स्वजनजीक सीता-शीलमैथिली काव्यक डॉ. वीणा कर्ण कृत साहित्यिक विवेचना:-
आश्चर्यक बात तँ ई जे मात्र एकहि छन्द मे प्रयुक्त कथानक भेलो पर एहि मे कतहु रसहीनताक अवसर नहि भेटैछ. काव्यकलाक अन्तरंग ओ बहिरंंग नवीनता, भावनाक माधुर्य ओ रसविदग्चताक कारण कवि कें अपन अन्तस्थल सांस्कृतिक चेतना कें सार्वजनिक करबाक सुअवसर प्रप्त भेल छन्हि.
रस कें काव्यक आत्मा मानल गेल अछि. संस्कृतक प्राय: सभ विद्वान रसक महत्ता कें स्वीकार केअने छथि. पंडित राज जगन्नाथ रसे कें काव्यक आत्मा स्वीकार करैत चाथि: -"रमणीयार्थ: प्रतिपादक: शबद: काव्यम" रसे मे ई शक्ति छैक जे काव्यक रसास्वादनक सत्य अर्थ मे अवसर प्रदान करबैत अछि. सहृदयक ह्रदय में आह्लाद एवं मन कें तन्मय बना देबाक रसक क्षमता सँ वाणी गद्गद ओ शरीर रोमांचित कए जायत अछि. साहित्य मे एकर सुन्दर प्रयोग सँ ब्रह्मानंदक सहोदरक रूप मे परमात्माक साक्षात्कार होएबाक अनुभूति होइत अछि. आध्यात्मिकताक भाव्भूमि पर रचल-बसल एकर विषयवस्तुक निर्वहनक लेल 'सीता-शील' मे शान्त रसक प्रयोग तँ भेले अछि, एहि मे श्रुंगार रसक एहन प्रभावशाली ओ उत्प्रेरक वर्णन भेल अछि जे काव्य मे साधारणीकरणक उपयोगिता कें सार्थक सिद्ध करैत अछि. महाकाव्य मे रसक उपस्थितिक केहन सशक्त प्रभाव पड़ैत अछि, पाठकक भावुकता कें उद्बुद्ध करए मे एकर की भूमिका छैक, एकर समालोचना एकरा कोन रूपें स्वीकार करैत छथि तकरा एहि महाकाव्यक प्रति कहल गेल बिहार विश्वविद्यालयक भूतपूर्व राअजनीति विज्ञानक अधयक्ष प्रो. देवनारायण मल्लिकक शब्द मे देखल जा सकैत अछि- "रचनाकारक प्रारम्भिक विनययुक्त पद्य पर दृष्टि परितहिं पढ़बाक उत्सुकता भेल. एके बैसक मे 'सीता-शील' कें आद्योपान्त पढ़ि गेलहुँ. एहि पाठ्यांतर मे कतेको बेर आँखि सँ नोर बहल अछि, कतेको बेर रोमांचित भए उठलहुँ अछि, कतेको बेर देवत्वक परिवेश मे आत्मा कें विचरण करैत पौलहुँ."
काव्य मे जँ रसास्वादन करएबाक क्षमता न्हि हो तँ ओकरा काव्यक कोटि मे राखले नहि जा सकैत अछि. काव्य सृजनक आधार होइत अछि रस. प्रबन्ध काव्य मे एकटा प्रधान रस होइत अछि जकरा अंगी रस कहल जाइत अछि आ अन्य रस सभ ओहि अंगी रसक सफलता मे सहयोगीक काज करैत अछि.
काव्य मे रसक अनिवार्यता प्राय: सभ विद्वान मानने छथि. हँ,ई बात फराक अछि जे केओ एकरे काव्यक आत्मा मानैत छथि तँ केओ अलंकार कें....
(अगिला पोस्ट मे पढ़ू खण्ड.-6 /9 )
श्री शोभाकांत दास सपत्नीक 
(खण्ड- 6 /9) खड्गबल्लभ दास स्वजनजीक सीता-शीलमैथिली काव्यक डॉ. वीणा कर्ण कृत साहित्यिक विवेचना:-
...केओ काव्य मे ध्वनिक समर्थक छथि तँ केओ छंद पर जोर दैत छथि किन्तु समग्र रूप सँ विद्वान सभक कथानक निचोड़ ई अछि जे रसोत्कर्षक सहायकक रूप में अलंकार केँ राखल जा सकैत अछि किन्तु एकरा काव्य मे सार्वभौम सत्ताक कारण नहीं कहल जा सकैत अछि. अलंकार काव्यक सौंदर्यवृद्धि मे सहायक तँ होइत अछि किन्तु एकरा काव्यक आत्मा मानब अनुपयुक्त होएत. वस्तुत: रसे केँ काव्यक आत्मा मानब उचित अछि से रस 'सीता-शील'क प्राणवन्तताक प्रमाण प्रस्तुत करैत अछि. जेँ कि प्रस्तुत महाकाव्य भगवती सीताक सुशीला स्वभावक दस्तावेज अछि, भारतीय संस्कृतिक प्रति कविक उच्चादर्शक निरूपण अछि आ पोथीक प्रारम्भ सँ लए कए अन्त धरि सीताक प्रति करुणाक अजस्र धार बहएबाक अवसर प्रदान करैत अछि तेँ एकरा करुण रस प्रधान महाकाव्य कहि सकैत छी अर्थात् करुण रस एहि महाकाव्य मे अंगी रसक रूप मे उपस्थित अछि आ अंगक रूप मे अन्य रस सभ सहयोगीक काज करैत एकर रसास्वादनक क्षेत्र विस्तार करैत अछि जेना - सीतारामक अपरिमित प्रेम प्रसंग मे संयोग ओ वियोग श्रृंगार, सूर्पनखाक विरूपित रूप मे हास्य रस, जानकीक जन्मक क्रम मे वात्सल्य, परशुराम-लक्षमण संवाद मे रौद्र, राम-रावण युद्ध, बालि-वध, खरदूषण वध, मारीचवध आदि मे वीर रस, सीताक जनकपुर सँ विदाई ओ वनगमनक काल सासु सभक उपदेश ओ सीता सँ विछोह मे करुण रस आदिक उपादेयता केँ देखल जा सकैत अछि.
काव्य मे अलंकारक उपस्थिति सँ एकर सौंदर्यवृद्धि ठीक ओहिना होइत अछि जेना कोनो नारीक सौन्दर्य अलंकारक प्रयोगेँ द्विगुणित भए जाइत अछि. अलंकार सँ काव्य मे जे प्रभावोत्पादकता उत्पन्न होइत अछि से ओकर इएह शक्तिमत्ता अछि जाहि सँ काव्य सुकोमल ओ मधुर रूप ग्रहण कए पाठक केँ भाव-विभोर करैत अछि. एकरा मे हृदयग्रह्यता ओ सुषमासृष्टि करबाक क्षमता सँ एकर प्रभावान्वितिक प्रवाह तीव्रतर भए पबैत अछि. अलंकार प्रयोगक दृष्टिएँ 'सीता-शील' अद्भुत उदाहरण अछि. एहि मे उपमा, रूपक, अनुप्रास, अप्रस्तुत प्रशंसा आदिक आधिक्य रहितहुँ यमक उत्प्रेक्षा, वक्रोक्ति आदि अधिकाधिक अलंकारक प्रयोगेँ कविक कथ्यक मार्मिकता पाठक केँ साधारण स्तर सँ ऊपर उठाकए तन्मय कए दैत अछि.
अपन सुकोमल भावनाक अभिव्यक्ति मे कवि प्रकृति केँ कखनहुँ बिसरल नहि छथि. काव्य मे प्रकृति चित्रणक कारण होइत अछि कविक सौन्दर्यबोध ओ प्रकृति सँ हुनक साहचर्य से हिनक सौन्दरोपासनाक प्रति फलक साक्षी तँ प्रस्तुत रचना अछिए तखन ओहि सौन्दर्य के आत्मसात कएनिहार महाकविक वैभवपूर्ण सौंदर्यक वर्णन कोना ने करितथि.
(अगिला पोस्ट मे पढ़ू खण्ड.-7 /9 )
श्री विजयकांत दास सपत्नीक 
(खण्ड- 7 /9) खड्गबल्लभ दास स्वजनजीक सीता-शीलमैथिली काव्यक डॉ. वीणा कर्ण कृत साहित्यिक विवेचना:-
हिनक उच्चस्थ प्रकृति प्रेम केँ पोथी मे अनेको ठाम देखल जा सकैत अछि जेना मिथिलाक शोभा वर्णनक क्रम मे कवि प्रवर कहैत छथि -
"हिमधवल पर्वत-पुञ्ज तल मे बसल मिथिला प्रान्त ई
"सम्पूर्ण विश्वक देश एवं प्रान्त सँ शुभ शान्त ई"
सीता हरणक पश्चात रामक विलाप मे कविक प्रकृति सँ साहचार्यक एहन अभिव्यक्ति भेल अछि से देखिते बनैत अछि. कखनो ओ अशोक के सम्बोधित करैत भगवती सीताक पता ज्ञात होएबाक जिज्ञासा करैत छथि तँ कखनो जामुन सँ पूछैत छथि. कखनहुँ शाल सँ पूछैत छथि तँ कखनहुँ आम आ कटहर सँ. कखनो पीपर सँ पूछैत छथि तँ कखनो जूही, कनाओल, गेना, गुलाब, चम्पा, चन्दन, वर, कदम्ब, अनार, गूलरि सँ. कखनो कोमल हरिण, गजराज सिंह, बानर, भालू, सूर्या, वायु, चंद्र, धरती, वरुण, आकाश आदि जड़ हो अथवा चेतन, प्रकृतिक कण-कण सँ पूछैत छथि. कवि केँ प्रकृति सँ आत्मीय सम्बन्ध छन्हि जे प्रकृतिक लेल रामक सम्बोधन मे देखल जा सकय अछि. प्रकृतिक मानवीकरण सँ कथ्यक विश्वसनीयता द्विगुणित भए जाइत अछि जकरा आलम्बनक रूप मे ग्रहण कए महाकवि 'स्वजन' जी एहि महाकवि 'स्वजन' जी एहि महाकाव्य केँ चिरनूतन सौन्दर्य प्रदान करलन्हि अछि.
चित्ताकर्षक ओ प्रांजल भाषा मन-प्राण केँ पुलकित कए दैत अछि से 'सीता-शील'क रचनाकार भाषा केँ बोधगम्य, चित्रोपम एवं सस्वर बनएबाक भावुक प्रयास कएने छथि जाहि कारणें एकरा प्रति उद्दाम चित्ताकर्षण होइत अछि. कोनो साहित्यिक अपन रचना केँ चित्ताकर्षक बनएबाक लेल भाषा-प्रयोगक प्रति साकांक्ष रहैत छथि आ कथन केँ भव्यतर बनएबाक लेल नै मात्र अपनहि मातृभाषाक प्रयोग करैत छथि अपितु तत्सम, तद्भव, देशज ओ विदेशज भाषाक चारू रूपक सानुपातिक प्रयोग सँ रचनाक उत्कृष्ट बनएबाक सत्प्रयास करैत छथि. महाकवि 'स्वजन' जीक एहि रचना मे तत्सम, तद्भए आ देशज शब्द तँ एकर आधार स्तम्भ अछिए विदेशज शब्दल प्रयोगइ सेहो रचनाकार अत्यन्त कुशल आ प्रबुद्ध छथि जाहि कारणें ठाम-ठाम ओकर सुन्दर प्रयोग सँ वाक्य संगठन मे कतहु मोन केँ अकछा देबाक अवसर नहीं देने छथि. जेना औषधिक स्थान पर दवा, उनटि देबाक स्थान पर उलटि देब, घुरबाक स्थान पर वापस, लोकक स्थान पर लोग, पिताक स्थान पर बाप, नमहरक स्थान पर लम्बा, कायरताक स्थान पर कायरपना आदि अनेको शब्द केँ देखल जा सकैत अछि.
(अगिला पोस्ट मे पढ़ू खण्ड.-8 /9 )
श्री मिहिर कुमार 

(खण्ड- 8 एवम् 9 /9)
वस्तुत: कवि 'स्वजन' जी जाहि कुशलता सँ एहि रचना मे सीता-शीलक महत्ताक निरूपण मे अपन संवेदना ओ विस्तार केँ भाषाक कसौटी पर कसि कए भावना केँ अभिव्यक्ति देने छथि से निश्चित रूपेँ एहन महाकाव्यक लेल उपयुक्त, सुष्ठु भाषाक अनुरूप अछि जाहि सँ एहन भाषाक भावुकता महाकाव्य मे प्रयुक्त रस ओ अलंकार जकाँ धारदार, तीक्ष्ण ओ प्रभावोत्पादक भए सकल अछि. कवि अपन अतुल शब्द भण्डार सँ सुन्दर, सुकोमल ओ भावाभिव्यंजक शब्दक चयन कएने छथि जाहि मे अपन हृदयक रसरंग रंग टीपि देने छथि.
कोनहु रचनाकारक ई दायित्व होइत छन्हि जे ओ अपन एहन रचना मे स्थानीय विशेषता केँ स्थान अवश्य देथि से 'सीता-शील' मे मिथिलाक सौन्दर्य ओ संस्कृतिक वर्णनक क्रम मे महाकवि अपन उदात्त पात्रक मुँह सेँ की कहबैत छथि से देखू -
"तिरहुतक तुलना मे कोनो नहि देश-प्रान्त पबैत छी
मिथिला सदृश सौन्दर्य हम संसार मे न सुनैत छी"
तहिना वनक मनोरमता केँ सीता-रामक वनवासक क्रम मे ओ रावणक ऐश्चर्य केँ लंकाक वैभव सम्पन्न क्षेत्र मे देखल जा सकैत अछि.
प्रबन्ध काव्यक लेल कथोपकथन सेहो अत्यन्त आवशयक तत्व अछि किएक तँ एकर एक पात्र दोसर पात्र सँ जाहि बातक अपेक्षा रखैत छथि से वार्तालापहि सँ सम्भव भए सकैत अछि. रचनाकार कथोपकथनक प्रयोग मे केहन निपुण छथि तकर संगठन 'सीता-शील' मे सर्वत्र देखए मे अबैत अछि खास कए परशुराम-लक्ष्मण संवाद, लंका मे रावण ओ सीताक मध्यक वार्तालाप, अनुसूया-सीताक मध्य वैचारिक आदान-प्रदान आदि प्रसंग मे देखल जा सकैत अछि.
महाकाव्यक महत् उद्देश्य होइत अछि आ रचनाकार द्वारा ओकरा अपन रचनाक बिना आलम्बन बनौने कोनहु रचनाक सार्थकता सिद्ध नहि कएल जा सकैत अछि से अहू रचनाक पाछाँ महत् उद्देश्य छैक आ ओ छैक संसार सँ आसुरी शक्तिक नाश, मानवताक उच्चस्थ भावना केँ सम्मानित करब आ भगवती सीताक शील केँ समक्ष राखि नारीक विशुद्धाचरणक माध्यम सँ जन-कल्याणक भावना केँ पल्लवित करब. अपन एहि महत् कार्य-सम्पादन मे महाकवि अनेक ठाम सटीक सूक्ति वचनक प्रयोग कए समाजसुधारक कार्य सम्पादन करैत छथि जकरा देखबाक होयए तँ 'सीता-शील'क अनेक प्रसंग एकर गवाही देत. नारीक आदर्श केँ जीवनक अक्षयनिधि मानि ओकरा सम्मानित करबे एहि रचनाक मुख्य उद्देश्य अछि जकरा एकर चरित्र-प्रधान शीर्षक मे देखल जा सकैत अछि. कहाकवि 'स्वजन' जी स्वयं कहैत छथि -
"सीखथु जगत मे नारिगण शिक्षा सियाक चरित्र सँ
स्वामी प्रसन्नक लेल सब किछु करथि हृदय पवित्र सँ"
आ पुन:-
"ई चरित पढि आदर्श नीवन केँ बनौती नारि जे



बनतीह जग मे परमपूज्या पतिक परम पियारि से"
नारीक कर्त्तव्य ओ आदर्शक प्रति समाज केँ साकांक्ष करबाक एहि उद्देश्य प्रतिपादन मे महाकवि ख्ड्गबल्लभ दास जी अत्यन्त संवेदनशील छथि. भगवती सीताक शिव संकल्पयुक्त कर्त्तव्यपरायणता ओ पातिव्रत्य हिनका अत्यधिक भावुक बनौने छन्हि फलत: कवि कहि उठैत छथि -
"ई जौं पढ़थि सभ व्यक्ति 'सीता-शील' चित्त पवित्र सँ
पढ़ि नारि-नर आचार सीखथि जानकीक चरित्र सँ"
नारी चरित्रक सहिषणुता, सच्चरित्रता, लाग, क्षमाशीलता, ममता आदि गुण स्वस्थ समाज-निर्माणक दिशा मे आवश्यक तत्व अछि जे लोककल्याणकारी विचारधारा केँ सबल बनबैत अछि आ इएह अछि महाकवि खड्गबल्लभ दास 'स्वजन'क लोककल्याणकारी नारी जीवनक आदर्श आ ओहि आदर्शक अक्षरस: पालन करबाक पाठक सँ अपेक्षाक उद्देश्य प्रतिपादन.
(समाप्त)

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