Sunday 12 February 2017

डॉ.वीणा कर्ण - मैथिली और हिंदी की ख्यातिलब्ध भावप्रवण कवियित्री (Dr. Veena Karn - renowned poet in Maithili and Hindi)

“यहाँ किसी बलिदानी का 
                 बलिदान व्यर्थ ना जाय
                                  चाहे वो विपरीत लहर
                 जनता करती है न्याय”
(डॉ. वीणा कर्ण की पुस्तक ‘तुभ्यमेव समर्पये’ से)
डॉ. वीणा कर्ण, पटना विश्वविद्यालय में मैथिली की विभागाध्यक्ष रह चुकी हैं.  इन्होने  (राष्ट्रीय) साहित्य अकादमी की सदस्य के रूप में लम्बे समय तक अपना बहुमूल्य योगदान दिया है. मैथिली  भाषा को उचित स्थान दिलाने की दिशा में राष्ट्रीय स्तर पर इनका महत्वपूर्ण स्थान है. ये एक अत्यंत भावप्रवण कवियित्री हैं और इनकी काव्य-कृतियों में 'अर्गला' एवं 'भावनाक अस्थि-पंजर' मैथिली में तथा 'तुभ्यमेव समर्पये' हिंदी में प्रमुख रचनाएँ हैं. इनके अतिरिक्त रामकृष्ण मिशन के आग्रह पर इन्होंने स्वामी विवेकानन्द के 150वीं जन्मदिवस के अवसर पर उनके उपदेशों पर आधारित ब्रह्मचारी अमल की पुस्तक का अनुवाद भी किया. रचनाओं में देशप्रेम और अपने इष्ट के प्रति समर्पण के साथ-साथ नारीसुलभ भावप्रवणता काफी उच्च स्तर की है परन्तु मूल स्वर जो उभर कर आता है वह है संसार को प्रेम और सद्भावना से परिपूर्ण एक सुखद स्थल बनाने की अदम्य आकांक्षा का.
(डॉ. वीणा कर्ण,की कुछ कवितायें नीचे के चित्रों में प्रस्तुत है.)


डॉ. वीणा कर्ण के द्वारा की गई 'स्वजन' कृत मैथिली महाकाव्य सीता-शील' की शोधपरक समीक्षा आकाशवाणी से प्रसारित हो चुकी है और उंनका आलेख प्रकाशनाधीन है. उन्होने 'अत्रि-अनूसूया सँ भेंट' (पृ. 64, मूल संस्करण) में कवि द्वारा कही गई एक बात में सुधार की माँग की है. 'सीता-शील' के परिवार्वालों का स्पष्टीकरण पढ‌‌‌ने के लिए सीता शील के फसबुक वेबपेज पर क्लिक करें.









Add caption









No comments:

Post a Comment