दो कवितायेँ - भागवत शरण झा - 'अनिमेष'
कविता-1
कब तक
चुप रहोगी,
नन्ही चिड़िया ?
कब तक समेटे रहोगी डैने ?
कब तक पंख पर ढोओगी
माहौल की बंदिश ?
अब तुम्हे पंख फड़फड़ाना ही होगा
कब तक रहोगी चुप?
अब तुम्हे
अभिव्यक्ति का खतरा उठाना ही होगा।
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कविता 2 मैं सारी रात आँखों में काटता रहा बैठा रहा घुटनों से पेट को दबाये पीठ और घुटनों को गमछा से बांधे भूख को गरियाता। सारी रात आती रही फ़िज़ाओं में गरम मसाले की छौक और मैं महसूसता रहा मुर्गे की टांग को दांत से खींचने का स्वाद। हमारी तंगहाली उनकी खुशहाली में यूँ ही बना रहा संवाद। -------------------- (-भागवत शरण झा 'अनिमेष') facebook link of Sh. Bhagwat Sharan Jha 'Animesh' https://www.facebook.com/ bhagwatsharanjha.animesh?fref=ts |
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