Sunday, 2 October 2016

जमाल नदौलवी - बिहार के एक बेहतरीन शायर (Jamal Nadaulvi - Bihar ke ek behatarin shayar)

ये हैं जनाब ज़माल नदौलवी. तीखे नैन-नक्शवाले, मिज़ाज से शायर और एडुकेशन डिपार्टमेंट से रिटायर हुए श्री ज़माल अपने यौवन काल में जहाँ कहीं पोस्ट हुए लोगों ने इन्हें ‘कैसेनोवा’ (Casanova) समझा. आलम ये रहा कि ये महिलाओं की तरफ से लगातार आ रहे विवाह-प्रस्तावों से ये परेशान रहे क्योंकि पहले से शादी-शुदा थे. 


श्री ज़माल काफी अच्छे शायर हैं और इनकी पुस्तकें ‘आइना-ए-ज़माल’ (गद्य) तथा कशकोल-ए-सदा (शायरी) प्रकाशित हो चुकी हैं. और भी पहले इनकी किताब 'हिजाब-ए-निसवां का प्रकाशन हुआ जिसकी अधिकाँश प्रतियां देखते-ही-देखते बिक गईं. श्री ज़माल जब हिन्दी बोलने लगते हैं तो शुद्ध भाषा और उच्चारण में बड़े-बड़े पण्डितों को भी शरमा देने की क्षमता रखते हैं.



अपनी शरीके-हयात (धर्मपत्नी) से बेपनाह मुहब्बत करनेवाले श्री जमाल इन दिनों अपनी बीमार बेगम की दिन-रात सेवा करने में लीन हैं और इन्हें अब उसी में सन्तोष आता है. सच्चे प्रेम पर सही मायनों में अमल करनेवाले ऐसे शायर श्री ज़माल साहब ने हेमन्त हिम की  किताब 'तुम आओ चहकते हुए' सहित अनेक हिन्दी किताबों का उर्दू में तर्जुमा (अनुवाद) भी किया है जो अपनी संवेदनात्मक रचनाशीलता के कारण जानी जाती हैं.



जमाल जी  की कुछ गज़लें नीचे दी जा रही हैं जो बड़ी बेबाकी से जिंदगी के फलसफे का बयान करती नज़र आती हैं.










Jamal Nadaulvi showing the Urdu translation of  a book (Hemant Him's 'Tum Aao Chahakte Hue') done by him

ज़ल-1
(-जमाल नदौलवी)

कोई आँसू अगर छूकर तेरे रुखसार जाता है
तो नश्तर मेरी बेटी जिगर के पार जाता है
मुसलसल की कशाकश में कोई एक हार जाता है
कभी आज़ाद जाता है कभी बीमार जाता है
तुम्हारी झूठी सच्ची सब दलीलें रंग लाती हैं
हमारा ख़ून भी बह जाए तो बेकार जाता है
अजीब शै है सियासत खेल में पाले बदलती है
हमेशा जीतने वाला भी एक दिन हार जाता है
खलूस दिल हो गर शामिल अमल मकबूल रोता है
रियार गर हो जरा जिसमें अमल बेकार जाता है
यही दस्तूर दुनिया है कि हर शै आती जाती है
कोई इस पार आता है कोई उस पार जाता है
गरूरो नाज़ की बातें ज़रा भाती नहीं उसको
मियाँ ऐसे फिर औनी को तकब्बुर मार जाता है
तरसता है वतन को उम्र भर ‘जमाल’ गुरबत में
जो होने के लिए आज़ाद सू-ए-दार जाता है.
(-जमाल नदौलवी)  मो.9308713230


ग़ज़ल-2
(-जमाल नदौलवी)
जो जानता ही नहीं है चमन की कीमत किया
तो कर सकेगा गुलों की भला हिफाज़त किया
हमें तो आतिशे-नमरूद भी जला न सकी
यह सर हमारा है इस पर कोई तमाज़त किया
जहाँ के लोग तुम्हें आदमी नहीं लगते
अब ऐसे शहर में करनी भला सकूनत किया
हमारे पावों के छाले सफ़र के शाहिद हैं
हमारे सामने अब कोई भी मुसाफत किया
अजीम लोगों के कसरे अदब को देखो ‘जमाल’
मुकाबिल उनके तेरे शेर की इमारत किया
(-जमाल नदौलवी)  मो.9308713230

ग़ज़ल-3
(-जमाल नदौलवी)
कुछ लम्हा बसर चैन से करने नहीं देती
मरना भी अगर चाहूँ तो मरने नहीं देती
नाकाम तमन्नाओं का मेला है हर एक सू
तक़दीर को मेरे ये सँवरने नहीं देती
उलझन में गिरफ्तार हूँ कब से कहूँ तो क्या
आज़ाद कदम मुझको गुजरने नहीं देती
उलझा के झमेले में यूँ रक्खा मुझे उसने
तकमील तमन्ना कभी करने नहीं देती
पुरजोश इरादों में कहाँ जाँ है बाक़ी
जो करना अगर चाहूँ तो करने नहीं देती
क्या क्या न इरादा था मगर आह कहूँ क्या
यह दुनिया मुझे कुछ भी तो करने नहीं देती
(-जमाल नदौलवी) मो.9308713230



   






Tuesday, 13 September 2016

हिन्दी दिवस पर प्रो. बी. एन. विश्वकर्मा की दो कविताएँ ( Hindi Diwas par Dr. B. N. Vishwakarma ki do kavitayen)



कविता-1 (गीत)
सब भाषाएँ भाई-बहन हैं, दक्षिण को यह भान दो
हिन्दी को सुस्थान दो साथी हिन्दी को सम्मान दो

जन जन का अरमान है हिन्दी
राम कृष्ण रहमान है हिन्दी
भारत की पहचान है हिन्दी
मीरा और रसखान है हिन्दी
मिल जुलकर अब वतन को प्यारों अपनी एक जुबान दो
हिन्दी को सुस्थान दो साथी  हिन्दी को सम्मान दो

अपने ही आँगन में हिन्दी
बनी आज निर्वासिता
हिन्दी के जन ने ही हिन्दी
से न रखा है वास्ता
राष्ट्रभाषा के हित में मत में अंतर को प्रस्थान दो
हिन्दी को सुस्थान दो साथी  हिन्दी को सम्मान दो.
(-प्रो. बी. एन. विश्वकर्मा, पटना)
व्याख्याता एवं साहित्यकार, मो.- 9122720241



कविता-2
हिन्दी भाषा अपनी भाषा
इसका हो उत्थान
हम सब करते रहें हमेशा
हिन्दी का सम्मान
हिन्दी भारत का गौरव है
हिन्दी अपनी शान
सारे भारतीय करते हैं
हिन्दी का गुण-गान
भेद-भाव को भूल करें हम
हिन्दी पर अभिमान
राष्ट्र भाषा पर रहें एकमत
   इसमें शक्ति महान    
हिन्दी भाषा अपनी भाषा
इसका हो उत्थान.
(-प्रो. बी. एन. विश्वकर्मा, पटना)

व्याख्याता एवं साहित्यकार, मो.- 9122720241

Thursday, 8 September 2016

डॉ. बी. एन. विश्वकर्मा- 'क्यों छोड़ न देते पीना-पिलाना' (Dr. B.N. Vishwakarma- 'Kyon Chhor na dete Pina Pilana)



क्यों छोड़ न देते पीना-पिलाना
(कवि- डॉ. बी. एन. विश्वकर्मा, पटना) मो. 9122720241)
क्योंछोड़ न देते पीना-पिलाना

और आना-जाना मधुशाला.

मधुशाला तुम्हें लुभाएगी
रंगीनियाँ तुम्हें हरषायेगी 
मधुबाला नित सज धज कर तुम्हें 
नित अपने पास बुलायेगी.

जाने पर साथी मिल जाते
सब पीते और पिलाते हैं
दुर्दिन में आते काम नहीं
पल भर नहीं हाथ मिलाते हैं.

रमुआ का घर नीलाम हुआ
तब कौन बचाने आया था
जब बेवा की इज्जत लुट गई थी
तब कौन सामने आया था.

पीकर गंदे नालों में गिरते
तब न बचाती मधुशाला.
घर में जब मातम फैला हो
नजर न आती मधुबाला.

उस रोज मरा था रामरतन
पर आज न जाने कौन मरा
हो रहे रोगी तुम पी पीकर 
परिवार छुटा अच्छा भाला.

क्यों छोड़ न देते पीना-पिलाना
और आना-जाना मधुशाला.
(-डॉ. बी. एन. विश्वकर्मा, पटना) 
मो. 9122720241)

Monday, 15 August 2016

रक्षा बंधन पर डॉ. बी.एन. विश्वकर्मा की कविताएँ (Raksha Bandhan - Hindi Poems by Dr. B.N. Vishwakarma)



             

रक्षा-बंधन

देवासुर संग्राम में जब देवता रहे थे हार
वृहस्पति ने तब दिया उन्हें एक उपहार
बाँध कलाई पर रक्षा-कवच किया इंद्र का वंदन
श्रावण-पूर्णिमा को शुरू हुआ यह पर्व रक्षा-बंधन
फिर द्रौपदी ने कृष्ण को बाँधा रक्षा-बंधन
द्रोपदी की लाज बचाने आये देवकी-नन्दन
चाँद बीवी, महाराणा प्रताप, रमजानी- आलमसानी
भाई बहन के प्रेम की यह है अमर निशानी
बहन की रक्षा के लिए भाई देता है कुर्बानी
रक्षा-बंधन त्यौहार की यह है पवित्र कहानी.
(-डॉ. बी.एन. विश्वकर्मा)
पटना, मोबाइल- 9122720241
...................
 प्यारी छोटी बहना


ओ मेरी प्यारी छोटी बहना
है गाँव-घर का तू गहना
मानती है सबका कहना
गलत काम कभी न करना
मेरी है एक की इच्छा
पढ़-लिख कर तुम बनो अच्छा
जब बड़ी तू हो जाएगी
हमें छोड़ दूसरे घर जाएगी
हम सब देंगे तुम्हें आशीर्वचन
मुख पर रहे मुसकान खुश रहे मन
कभी भी न तू रोना धोना
ओ मेरी प्यारी छोटी बहना.
(-डॉ. बी.एन. विश्वकर्मा)

पटना, मोबाइल- 9122720241




Saturday, 13 August 2016

Hasan Nawab Hasan and his Poems (हसन नवाब हसन और उनकी शायरी)




 Urdu poem with Hindi meaning given below the pictures


बेटी का मुकाम (मुकाम =देर तक ठहराव)

लड़की तो होती है अलाह की रहमत के लिए
बेटी बनती है माँ बाप की खिदमत के लिए
फिर बहन बनती है भाई से मुहब्बत के लिए
सब को छोड़ आती है शौहर की रेफ़ाक़त के लिए
शब्दार्थ: (1) रहमत = कृपा, (2) खिदमत = सेवा, (3) रेफाक़त = साहचर्य

आ के बेगानों को ये अपना बना लेती है
अपने दामन में भरा प्यार लुटा देती है
(1) बेगानों= अजनबियों, (2) दामन= झालर, तलहटी   

                 
बाप का प्यार तो मशहूर है बेटी के लिए
सारा दुःख बाप को मंज़ूर है बेटी के लिए
हो परीशाँ भी तो मसरूर है बेटी के लिए
दिल के ज़ज्बात से मजबूर है बेटी के लिए
(1) मसरूर = आनन्दित

थक के शाम को जब लौट के बाप घर आता है देख कर बेटी के चहरे को ख़ुशी पाता है.
           
कौन कहता है भला होती है ज़हमत बेटी
सच तो ये है के है अल्लाह की रहमत बेटी
होती है घर के लिए बायसे-बरकत बेटी
अपने माँ बाप के है कल्ब की राहत बेटी
(1) ज़हमत = परेशानी, (2) रहमत = कृपा, (3) बायसे-बरकत = समृद्धि का कारण, (4) कल्ब -= दिल

बेटे वालों को ये साअत कहाँ हाथ आती है
बेटी के घर पे तो खुशियों की बारात आती है.


प्यार से अपने अँधेरे में उजाला कर दे
हर नए घर की ये रौनक को दोबाला कर दे
ख़ार की डाली को भी फूलों की माला कर दे
अपनी आग़ोश में अदना को ये आला कर दे
(1) दोबाला = दोहरा, (2) अदना, आला=छोटा, बड़ा

एक दूल्हन घर के लिए रस्के-जेनां बनाती है
पाती मेराज है जब बीवी से माँ बनती है.
         
(1) रस्के-जेनाँ = स्त्रियों को शर्मानेवाली, (2) मेराज = ऊँचाई

क्या मुकाम होता है बेटी का ये किसने जाना
नस्ल बेटे ही से बढती है ये सब ने समझा
क्या शरफ़ बेटी को 'अहमद' की खुदा ने बख्शा
नसले-सादात बढ़ी कैसे किसी ने सोचा?
(1) मुकाम = स्थायी पड़ाव, (2) शरफ = सम्मान, (3) नसले-सादात = सैयदों की नस्ल

इस हकीकत को मुसलमान गए शायद भूल
लोग हसनैन ही को कहते थे फ़रज़न्दे-रसूल
(1) हसनैन = हसन और हुसैन = रसूल के नाती जिन्हें लोग रसूल का बेटा समझते थे, (2) फ़रज़न्दे-रसूल = रसूल के बेटे


सिर्फ बेटी को ही हासिल है ये दुनिया में मकाम
बन के माँ के करती है खल्के-बनियादम का ये काम
कुछ तो इस बात से हम लोगों को मिलता है पयाम
अपनी बेटी को मुहम्मद किया करते थे सलाम
(1) पयाम = सन्देश

बेटा होता कहाँ बेटी जो न होती मौजूद
बेटी माँ बन के अता करती है बेटे को वजूद.
(-हसन नवाब 'हसन')
मोबाइल- 7091978189
snawab.hasan14@gmail.com
Poet - Hasan Nawab 'Hasan'
Note- Sri Hasan is a reknowned poet in Bihar.

Poet- Hasan Nawab Hasan



Tuesday, 9 August 2016

Beti (Daughters) - Poems by Dr B N Vishwakarma [ बेटी - डॉ. बी. एन. विश्वकर्मा की कविताएँ ]

Hindi Poems by Dr B N Vishwakarma given below the photo with their English translation


1.शान हैं बेटियाँ

(English translation of this poem is placed below Hindi
poem)

देश की शान हैं बेटियाँ, मान-सम्मान भी हैं बेटियाँ

जन्म से पहले मत मारो, बोझ ये नहीं हैं बेटियाँ
धरती पर जब से आती, बोझ उठाती हैं बेटियाँ
बचपन से माँ के संग, हाथ बँटाती हैं बेटियाँ
पापा जब तक घर न लौटें, बाट जोहती हैं बेटियाँ
होली, दीवाली हो या ईद, शान पर्वों की हैं बेटियाँ
रक्षा-बंधन जब आ जाएँ, कलाई की रौनक हैं बेटियाँ
हर दृष्टि से देखी-परखों, सार्थक जरूरत हैं बेटियाँ
इन्हें दो स्नेह और शिक्षा, आगे बढ़ जाएंगी बेटियाँ
जीवन भर पापा-मम्मी को ध्यान है रखती बेटियाँ
रानी झाँसी, सरोजनी नायडू सी हमारा मान हैं बेटियाँ
जन्म से पहले मत मारो, देश की शान हैं बेटियाँ.
(डॉ. बी.एन.विश्वकर्मा, पटना) मो.- 9122720241

The pride of the country, daughters, daughters are honor

Do not shoot before birth, daughters are not our burden
The moment she comes on earth, she carry burden
Since childhood with the mother, daughters help mothers
Until father returns home, daughters wait on the door
Daughters are pride of all festivals- Holi, Diwali or Eid
On the festival of Raksha-bandhan, daughtes adorn your
wrist
Viewed from every angle- daughers are meaninghful necessity
Give them affection and education,daughters will move ahead
Daughters take care of her parents thoughout her life-span
Queen of Jhansi, Sarojini Naidu, daughters are our pride
Do not shoot them before the birth, they are pride of 
nation.
(Dr. B.N.Vishwakarma, Patna) Mob- 9122720241
Translated by Hemant Das 'Him'..........
Know more about Dr. B. N. Vishwakarma. Click the link 
http://creativeskyofbihar.blogspot.in/2016/08/dr-b-n-vishwakarma-devoted-cultural.html
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2. मुस्कुराती है बेटियाँ 
कुदरत से नूर लेकर आती हैं बेटियाँ
बन के सुबह का सूरज
 जग में रौशनी फैलाती है बेटियाँ
अरे बताओ न दोस्तों क्यों इतनी
इतनी प्यारी होती हैं बातियाँ
कुदरत से नूर लेकर आती हैं बेटियाँ.

धड़कन बन दिल में धड़कती है बेटियाँ
कहीं बन के दुल्हन घर बसाती हैं
कहीं अपना अंश देकर माँ कहलाती है बेटियाँ
थाम माँ,  पिता, पति का हाथ मुस्कुराती है बेटियाँ
कुदरत से नूर लेकर आती हैं बेटियाँ.

बन के उनका सहारा
खिलखिलाती है बेटियाँ
मुस्कान भरे आशा-विश्वास के साथ
छूने को आसमाँ कदम उठाती हैं बेटियाँ
कुदरत से नूर लेकर आती हैं बेटियाँ.
.......................


(कवि- डॉ. बी. एन. विश्वकर्मा)
# Smiles Daughters #

Daughters bring nature's light
Become the morning sun
Daughters diffuse light in the world
Hey friends, so why not tell
There are so sweet daughters
Daughters bring the nature's light

Daughters become beating heart is accompanied by throbbing
Somewhere she as a bride makes a home
Somewhere she gives her own part and is called mother
Holding the hands of parents daughters smile
Daughters bring the nature's light

Becoming their support
Daughters take a laugh
Hope filled with smile and confidence
Daughters takes her steps upward to touch the sky
Daughters bring the nature's light
(Dr. B..R. Viswkarma, Patna) Mo- 9122720241

Translated by Hemant Das 'Him'
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बेटी-बेटा में भेद नहीं

बेटी, मानव जाति का स्रोत है
दया, करुणा से ओत-प्रोत है
फिर भी मानव जाति में एक खोट बार-बार
सोचता है बिन बेटा सूना रहेगा घर बार
अरे मानव तू जाग ! मानव तू अब जाग !
मत लगा बेटी-बेटा में भेद-भाव की आग.

बेटा पैदा होने पर बजती है शहनाइयाँ
फूटते हैं पटाखे और बंटती है मिठाइयां
पर बेटी के पैदा होते ही उड़ती है चेहरों पर हवाइयाँ
जैसे छा गई मायूसी की परछाइयाँ
हे मानव ! किससे कहूँ मनोव्यथा
सुरसा के सामान बढ़ती जाती दहेज़ प्रथा
अरे मानव तू जाग ! मानव तू अब जाग !

मत लगा बेटी बेटा में भेद भाव की आग.
बेटी पैदा होने पर तू पत्नी पर मत उगल आग
बेटी पैदा होने पर तू क्यों रोता सिसकता है
आखित तू भी तो किसी बेटी का ही बेटा है
है खान पान पोषण में बराबर के हकदार
बेटी हों या बेटा सभी हैं देश के कर्णधार
अरे मानव तू जाग ! मानव तू अब जाग !
मत लगा बेटी बेटा में भेद भाव की आग
..... .. बेटी बेटा में भेद भाव की आग
(डॉ. बी. एन. विश्वकर्मा) पटना
मोबाइल- 7301691650
There is no difference between son and daughter
Daughter is the source of mankind
She is full of mercy and compsssion
However it is a flaw in mankind again
People think their house won’t be complete without son
Hey man, you wake up! Human thou awake!
Don’t set on fire of differences between son and daughter.

Clarinets are played on the birth of son
Crackers and burst, sweets are distributed
And on the very birth of daughters, faces turned pale
Shadows of despair pervades all around
O mankind! To whom I share my anguish
Like Sursa (a female demon) dowry system increases
Hey man, you wake up! Human thou awake!
Don’t set on fire of differences between son and daughter.

On the birth of daughter, don’t get angry on your wife
Why do you snivel on the birth of daughter
Just think, you are also a son of someone’s very daughter
She is entitled to equal food and nutrition
Both of daughter and son are helmsmen of the nation
Hey man, you wake up! Human thou awake!
Don’t set on fire of differences between son and daughter.
..... .. between son and daughter.
(Dr. B. N. Vishwakarma) Patna
Mobile 7301691650
Translated by Hemant Das 'Him'
To know more about Dr. B.N.Vishwakarma, click below