समय एक सर्वव्यापी एवं सार्वकालिक सत्ता है, अतएव हमारे जीवन के सभी कार्य-कलापों का साक्षी है.
सृष्टि, कार्य-कारण (Cause-Effect) न्याय के अधीन है. भूत, वर्तमान का कारण है एवं वर्तमान भविष्य का. कार्य-कारण न्याय को हम क्रिया-प्रतिक्रया-क्रिया का एक अंतहीन क्रम भी कह सकते हैं. क्रिया विधेयी (Positive) वस्तु है, जबकि प्रतिक्रया परिणामात्मक (Reactive). क्रिया विवेक (Rationality) की पहचान है एवं प्रतिक्रया उसका समयजन्य परिणाम. कर्ता (Doer), कार्य-कारण न्याय का एक आवश्यक अवयव है.
मनुष्य एकमात्र ज्ञात विवेकशील प्राणी है, अतएव अपने द्वारा की गई क्रियाओं का करता है तथा उसके समयजन्य प्रतिक्रया का भोक्ता भी.
मनुष्य जाने-अनजाने जो भी करता है, उसका प्रतिफल प्रतिक्रया दसके रूप में मिलना अपरिहार्य है बिना किसी अपवाद के. कब और कैसे? यह समझना मानवीय क्षमता से परे है.
संक्षेप में यह समझने की आवश्यकता है कि हम जो कुछ भी करते हैं वो बिना किसी जीव या वस्तु के सापेक्ष न करके समय के सापेक्ष न करके, समय के सापेक्ष करते है. और समय अपने सापेक्ष की गई क्रिया को आज नहीं तो कल प्रतिक्रया के रूप में वापस अवश्य करेगा. यही प्रकृति का नियम और कर्मवाद का सिद्धांत है.
समय की प्रतिक्रिया के परिणाम एवं प्रभाव क्रिया के अनुरूप होते हैं. परिणाम वस्तुनिष्ठ (Objective) चीज है एवं प्रभाव विषयनिष्ठ (Subjective). प्रतिक्रया का प्रभाव इस बात पर निर्भर कर्ता है कि कार्य के समय कर्ता की मानसिकता क्या थी.
इसलिए, मानवता की रक्षा के लिए एक सिपाही का बन्दूक चलाना एवं मानवता के विनाश के लिए एक आतंकवादी का बन्दूक चलाना दोनों एकदम भिन्न क्रियाएँ हैं. अतएव इन दोनों के समयजन्य प्रतिक्रिया प्रभाव (कर्ता पर) एकदम भिन्न होंगे.
आइये, 1 जनवरी 2016 के अवसर पर इस सत्य को समझें कि हम जो भी भला या बुरा करते हैं, वह समय के सापेक्ष में कर रहे हैं – माध्यम चाहे जो भी हो – एवं समय इसे वापस अवश्य करेगा, प्रतिक्रया के रूप में.
समय की प्रतिक्रया का प्रभाव, हम पर कैसा हो, ये हम पर निर्भर करता है.
शुभकामनाओं के साथ
इति शुभम!
- शिवम
shivamsbi@yahoo.co.in
- शिवम
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जब आनेवाला कल बीते हुए कल बनकर रह जाता है तो मेरा ये मानना है की जीवन के हर पल, हर क्षण, हर वक़्त, हर मनोस्थिति जो भविष्य के रूप में सोचते हैं; वर्तमान में उसे व्यतीत करते है और फिर उसे भूत के रूप में याद करते हैं | अतः जीवन एक भविष्य है जो वर्तमान से होकर भूत की ओअर सदा प्रस्थानित रहता है !
ReplyDeleteविजय जी, आपकी अंतर्दृष्टि बहुत गहरी एवम स्पष्ट है. धन्यवाद.
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