Saturday, 19 September 2015

ओ दु:ख - भागवत शरण झा ‘अनिमेष’( O Dukh - Bhagwat Shran Jha 'Animesh' )

Pain- the real artisan of humanity. Poet Bhagwat Sharan Jha Animesh speaks from within:
ओ दु:ख
आओ मुझे मांजो
जैसे मां मांजती है बरतन
किसान पिजाता है खुरपी
संत भांजता है विवेक



ओ दु:ख
मुझे लोहार की तरह असह्य अग्निदाह दो
फिर ठोको ठांय-ठांय-ठनक-ठनक
मुझे मेरा सही आकार दो
मोती की तरह छेदो मुझे
हीरे की तरह काटो-तराशो
सोने की तरह करो मेरी अम्ल-परीक्षा
ओ दु:ख हो सके तो मेरे मन में कर दो
पांच-सात छेद
फिर बजने दो मुझे बांसुरी की तरह

ओ दु:ख
जीवन का स्थायी भाव तेरे सिवाय कौन ?
ओ दु:ख
दे दो मुझको मेरा महामौन
कि मैं भी शिव बनकर विषपान करूं
क्योंकि मुझे पता है कि मैं तुझसे भाग सकता हूँ
बच नहीं सकता.
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(-भागवत शरण झा ‘अनिमेष’) मोबाइल-8086911256

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